नई दिल्ली ! तपेदिक (टीबी) किसी भी उम्र, जाति या वर्ग को प्रभावित कर सकता है और दुनिया भर में 2015 के दौरान टीबी के 1.04 करोड़ नए मामले आए तो देश में भी हर साल 22 लाख नए रोगी सामने आते हैं। ...
श में हर साल टीबी के गिरफ्त में आ रहे 22 लाख नए रोगी
नई दिल्ली ! तपेदिक (टीबी) किसी भी उम्र, जाति या वर्ग को प्रभावित कर सकता है और दुनिया भर में 2015 के दौरान टीबी के 1.04 करोड़ नए मामले आए तो देश में भी हर साल 22 लाख नए रोगी सामने आते हैं। टीबी के कारण होने वाली कुल मौतों में से करीब 60 फीसदी मौतें छह देशों में होती है, जिनमें से सबसे अधिक मौतें भारत में हुई और उसके बाद इंडोनेशिया, चीन, नाइजीरिया, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में होती हैं। इस बीमारी से भारत में करीब 2.20 लाख लोग सालाना मरते हैं व अब बच्चों में टीबी तेजी से फैलने के मामले सामने आ रहे हैं।
बहुत कम लोग जानते हैं कि यह बीमारी बच्चों को भी प्रभावित करती है व वर्ष 2015 के अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में करीब 10 लाख बच्चे टीबी के शिकार हुए और उनमें से 1,70,000 बच्चों की मौत टीबी (एचआईवी से संक्रमित बच्चों को छोडक़र) के कारण हुई। भारत में टीबी के कुल मामलों में से 10 फीसदी बच्चों में होते हैं लेकिन सिर्फ छह फीसदी का ही पता चल पाता है। बच्चों में टीबी को अक्सर अधिक ध्यान नहीं देते हैं क्योंकि बच्चों में इसकी जांच और इलाज करना बहुत मुश्किल होता है। वल्र्ड टीबी डे, 24 मार्च 2017 ऐसा अवसर है, जब बच्चों में टीबी के बढ़ते मामलों के प्रति जनता में जागरूकता बढ़ाई जा सकती है। बच्चों के डॉक्टर राहुल नागपाल बताते हैं कि बच्चों में टीबी के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है और हर महीने मेरे पास टीबी के 7 से 10 नए मामले आते हैं। जिसमें पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को टीबी से प्रभावित और ओपीडी में देखना दुखद होता है। बच्चों में टीबी, उसकी उचित जांच और इलाज को लेकर लोगों में जागरूकता नहीं है। सबसे कम उम्र के बच्चे में टीबी का मामला मेरे सामने आया था। इस नवजात का जन्म समयपूर्व हुआ था और महज 1500 ग्राम के इस शिशु को जन्म से ही टीबी थी। डा. नागपाल बताते हैं कि मैंने ऐसे कई मामले देखे हैं लेकिन मुझे यह मामला इसलिए याद रहा क्योंकि बच्चे की मां को गर्भाषय का टीबी था और उसे इस बात की जानकारी नहीं थी। कई लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि टीबी कहीं पर भी हो सकती है और किसी से भी ट्रांसफर हो सकती है। बच्चों में टीबी के 60 फीसदी मामले फेफड़ों से जुड़े होते हैं जबकि बाकी 40 फीसदी फेफड़ों के अतिरिक्त अन्य अंगों में होते हैं और टीबी के मामलों में हर साल 20 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। वहीं, लोगों को इसके बारे में बहुत कम जानकारी है। पदमश्री डा. केके अग्रवाल कहते हैं कि टीबी एक ऐसी बीमारी है, जिसकी रोकथाम और इलाज दोनों संभव है। बचपन में होने वाले टीबी से निपटना बहुत मुश्किल और जरूरी होता है क्योंकि इसकी जांच और इलाज में कई चुनौतियां होती हैं। जन्म के समय बच्चों को बीसीजी का टीका लगाना अनिवार्य होता है। 5 साल से कम उम्र के बच्चे में अगर टीबी के लक्षण दिखें तो मैनटॉक्स टेस्ट कराएं, जो वयस्कों के लिए बेहद किफायती और विष्वसनीय स्क्रीनिंग टेस्ट है और इसे लक्षण जांचने के लिए किया जाता है। हालांकि इस टेस्ट की जांच से उन बच्चों में लक्षण ढूंढऩा बहुत मुश्किल है, जिसे बीसीजी टीका लगाया गया हो। बच्चों में टीबी की बीमारी के लक्षणों और संकेतों में खांसी, बीमारी या कमजोरी, आलस्य का अहसास, उदास रहना वजन घटना या विकास नहीं होना, बुखार, रात में पसीना आने पर जांच जरूरी है।
नई दिल्ली ! तपेदिक (टीबी) किसी भी उम्र, जाति या वर्ग को प्रभावित कर सकता है और दुनिया भर में 2015 के दौरान टीबी के 1.04 करोड़ नए मामले आए तो देश में भी हर साल 22 लाख नए रोगी सामने आते हैं। टीबी के कारण होने वाली कुल मौतों में से करीब 60 फीसदी मौतें छह देशों में होती है, जिनमें से सबसे अधिक मौतें भारत में हुई और उसके बाद इंडोनेशिया, चीन, नाइजीरिया, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में होती हैं। इस बीमारी से भारत में करीब 2.20 लाख लोग सालाना मरते हैं व अब बच्चों में टीबी तेजी से फैलने के मामले सामने आ रहे हैं।
बहुत कम लोग जानते हैं कि यह बीमारी बच्चों को भी प्रभावित करती है व वर्ष 2015 के अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में करीब 10 लाख बच्चे टीबी के शिकार हुए और उनमें से 1,70,000 बच्चों की मौत टीबी (एचआईवी से संक्रमित बच्चों को छोडक़र) के कारण हुई। भारत में टीबी के कुल मामलों में से 10 फीसदी बच्चों में होते हैं लेकिन सिर्फ छह फीसदी का ही पता चल पाता है। बच्चों में टीबी को अक्सर अधिक ध्यान नहीं देते हैं क्योंकि बच्चों में इसकी जांच और इलाज करना बहुत मुश्किल होता है। वल्र्ड टीबी डे, 24 मार्च 2017 ऐसा अवसर है, जब बच्चों में टीबी के बढ़ते मामलों के प्रति जनता में जागरूकता बढ़ाई जा सकती है। बच्चों के डॉक्टर राहुल नागपाल बताते हैं कि बच्चों में टीबी के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है और हर महीने मेरे पास टीबी के 7 से 10 नए मामले आते हैं। जिसमें पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को टीबी से प्रभावित और ओपीडी में देखना दुखद होता है। बच्चों में टीबी, उसकी उचित जांच और इलाज को लेकर लोगों में जागरूकता नहीं है। सबसे कम उम्र के बच्चे में टीबी का मामला मेरे सामने आया था। इस नवजात का जन्म समयपूर्व हुआ था और महज 1500 ग्राम के इस शिशु को जन्म से ही टीबी थी। डा. नागपाल बताते हैं कि मैंने ऐसे कई मामले देखे हैं लेकिन मुझे यह मामला इसलिए याद रहा क्योंकि बच्चे की मां को गर्भाषय का टीबी था और उसे इस बात की जानकारी नहीं थी। कई लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि टीबी कहीं पर भी हो सकती है और किसी से भी ट्रांसफर हो सकती है। बच्चों में टीबी के 60 फीसदी मामले फेफड़ों से जुड़े होते हैं जबकि बाकी 40 फीसदी फेफड़ों के अतिरिक्त अन्य अंगों में होते हैं और टीबी के मामलों में हर साल 20 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। वहीं, लोगों को इसके बारे में बहुत कम जानकारी है। पदमश्री डा. केके अग्रवाल कहते हैं कि टीबी एक ऐसी बीमारी है, जिसकी रोकथाम और इलाज दोनों संभव है। बचपन में होने वाले टीबी से निपटना बहुत मुश्किल और जरूरी होता है क्योंकि इसकी जांच और इलाज में कई चुनौतियां होती हैं। जन्म के समय बच्चों को बीसीजी का टीका लगाना अनिवार्य होता है। 5 साल से कम उम्र के बच्चे में अगर टीबी के लक्षण दिखें तो मैनटॉक्स टेस्ट कराएं, जो वयस्कों के लिए बेहद किफायती और विष्वसनीय स्क्रीनिंग टेस्ट है और इसे लक्षण जांचने के लिए किया जाता है। हालांकि इस टेस्ट की जांच से उन बच्चों में लक्षण ढूंढऩा बहुत मुश्किल है, जिसे बीसीजी टीका लगाया गया हो। बच्चों में टीबी की बीमारी के लक्षणों और संकेतों में खांसी, बीमारी या कमजोरी, आलस्य का अहसास, उदास रहना वजन घटना या विकास नहीं होना, बुखार, रात में पसीना आने पर जांच जरूरी है।
साभार देश बन्धु
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