महेश दीक्षित-विशेष टिप्पणी..आज सांध्य दैनिक 6pm में
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बाबूलाल गौर जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे, तब वे सिर्फ भोपाल के मुख्यमंत्री कहलाते थे...और अब जब कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए हैं, तो वे सिर्फ छिंदवाड़ा के मुख्यमंत्री कहलाते हैं। वजह, नाथ पांच महीने बाद भी छिंदवाड़ा की खोल से बाहर नहीं आ सके हैं। उनकी सुबह छिंदवाड़ा से शुरू होती है और रात भी छिंदवाड़ा चिंतन में ही खत्म हो जाती है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ने सरकारी खजाना खाली होने का हवाला देकर फिजूलखर्ची पर रोक लगाने की बात कही थी। मगर,फिजूलखर्ची का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि खुद नाथ अपने सीएम हाउस की देश-विदेश के आर्किटेक्ट की मदद से साज-सज्जा करा रहे हैं। उनके मंत्री सरकारी खजाने को उड़ा रहे हैं। मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों के बंगलों के रेनोवेशन पर 50 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके हैं। खर्च करें भी क्यों नहीं? पंद्रह साल के लंबे वनवास का फ्रस्टेंशन जो है। ये हालात तब हैं, जब प्रदेश के कर्मचारियों को वेतन देने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। किसानों की कर्जमाफी पैसे के अभाव में रुकी हुई है। पैसे न होने की वजह से दर्जनों विकास योजनाएं शुरू नहीं हो पा रही हैं।
सरकार का फ्रस्टेशन आंख, नाक और कान कहे जाने वाले अफसरों पर भी निकल रहा है। 165 दिन की सरकार में 16 हजार से ज्यादा तबादले करके नाथ सोच रहे हैं कि उन्होंने ब्यूरोक्रेसी में सब कुछ व्यवस्थित कर दिया है। जबकि सरकार की इस तबादला नीति की मप्र ही नहीं पूरे देश में जगहंसाई हो रही है। लोग कहने लगे हैं कि कमलनाथ सरकार में सिर्फ एक ही लॉ एंड आर्डर है कि, पैसा लाओ और ऑर्डर ले जाओ यानी एक-एक अधिकारी का कई-कई बार तबादला किया जाना सवाल खड़े कर रहा है? खबर तो यह भी है कि इंदौर के एक मंत्री ने सिर्फ ट्रांसफर-पोस्टिंग में 50 करोड़ रुपए कमाए हैं। दूसरे मंत्री भी बजाय विकास के लिए काम करने के इसी तरह के गोरखधंधों में लगे हुए हैं कि खींच लो-लूट लो, पता नहीं कब सरकार चलती हो जाए। नाथ सरकार ने लोकसभा चुनाव के समय दावा किया था कि 90 दिन में हमने 75 वचन पूरे कर दिए हैं। लेकिन कौन से वचन पूरे किए, विपक्ष तो पूछ ही रहा है, जनता भी अब सवाल कर रही है।
पांच महीने में ही जनता कमलनाथ सरकार को खारिज कर चुकी है। लोकसभा चुनाव में 29 में से 28 लोकसभा सीटें यानी प्रदेश के कुल 230 विधानसभा क्षेत्रों में से 217 क्षेत्र कांग्रेस हार चुकी है। फिर भी सरकार की अक्ल के ताले नहीं खुल रहे हैं। मुख्यमंत्री सरप्लस बिजली होने का दावा कर रहे हैं, मगर भोपाल-इंदौर जैसे महानगर कटौती से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं, तो गांवों के हालातों की कल्पना की जा सकती है। मुख्यमंत्री अफसरों को अल्टीमेटम दे रहे हैं, पर हालात दिन-ब-दिन और बदतर होते जा रहे हैं।
सरकार की जगहंसाई की दास्तान यहीं खत्म नहीं होती। सरकार अखबारों को लगातार टारगेट किए हुए है। कांग्रेस की सुदर्शन व्यक्तित्व की धनी एक महिला जनसंपर्क में बैठकर पांच बड़े अखबारों के विज्ञापनों के बिलों का भुगतान करा देती हैं और प्रदेश के 7 हजार पत्र-पत्रिकाओं के खबरनवीस भुगतान के लिए जनसंपर्क की ड्योढ़ी पर सिर पटकते रहते हैं। न्यूज वेबसाइट की बात तो और दूभर है। उन्हें आठ महीने से विज्ञापन तो मिलते ही नहीं, उनके भुगतान भी रोक दिए जाते हैं। इतना ही नहीं यह सुदर्शना अब पत्रकारों, इवेंट कंपनी और अफसरों के खिलाफ एफआईआर कराने के लिए धमका रही है। ऐसा लगता है जैसे अखबार नवीसों को सरकार ने जर-खरीद गुलमटा समझ लिया है।
कमलनाथ जी! अगर ऐसे ही चलता रहा तो बदलाव की हवा कहीं और दिखने लगेगी। फिर न तो आप और न ही आपकी सरकार कुछ कर पाने की स्थिति में होगी। कुल जमा खर्च सरकार की पांच महीने की उपलब्धि सिर्फ ट्रांसफर-पोस्टिंग है। यदि और कुछ उपलब्धि होती तो लोकसभा चुनाव में आपकी कांग्रेस की मध्यप्रदेश में यह दुर्गति नहीं होती। यदि मैं गलत हूं, तो ऐसा क्या हुआ कि जनता ने जिस कांग्रेस को पांच महीने पहले सिर-आंखों पर बैठाया था, उसे एक झटके में जमीन पर लाकर पटक दिया।
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बाबूलाल गौर जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे, तब वे सिर्फ भोपाल के मुख्यमंत्री कहलाते थे...और अब जब कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए हैं, तो वे सिर्फ छिंदवाड़ा के मुख्यमंत्री कहलाते हैं। वजह, नाथ पांच महीने बाद भी छिंदवाड़ा की खोल से बाहर नहीं आ सके हैं। उनकी सुबह छिंदवाड़ा से शुरू होती है और रात भी छिंदवाड़ा चिंतन में ही खत्म हो जाती है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ने सरकारी खजाना खाली होने का हवाला देकर फिजूलखर्ची पर रोक लगाने की बात कही थी। मगर,फिजूलखर्ची का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि खुद नाथ अपने सीएम हाउस की देश-विदेश के आर्किटेक्ट की मदद से साज-सज्जा करा रहे हैं। उनके मंत्री सरकारी खजाने को उड़ा रहे हैं। मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों के बंगलों के रेनोवेशन पर 50 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके हैं। खर्च करें भी क्यों नहीं? पंद्रह साल के लंबे वनवास का फ्रस्टेंशन जो है। ये हालात तब हैं, जब प्रदेश के कर्मचारियों को वेतन देने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। किसानों की कर्जमाफी पैसे के अभाव में रुकी हुई है। पैसे न होने की वजह से दर्जनों विकास योजनाएं शुरू नहीं हो पा रही हैं।
सरकार का फ्रस्टेशन आंख, नाक और कान कहे जाने वाले अफसरों पर भी निकल रहा है। 165 दिन की सरकार में 16 हजार से ज्यादा तबादले करके नाथ सोच रहे हैं कि उन्होंने ब्यूरोक्रेसी में सब कुछ व्यवस्थित कर दिया है। जबकि सरकार की इस तबादला नीति की मप्र ही नहीं पूरे देश में जगहंसाई हो रही है। लोग कहने लगे हैं कि कमलनाथ सरकार में सिर्फ एक ही लॉ एंड आर्डर है कि, पैसा लाओ और ऑर्डर ले जाओ यानी एक-एक अधिकारी का कई-कई बार तबादला किया जाना सवाल खड़े कर रहा है? खबर तो यह भी है कि इंदौर के एक मंत्री ने सिर्फ ट्रांसफर-पोस्टिंग में 50 करोड़ रुपए कमाए हैं। दूसरे मंत्री भी बजाय विकास के लिए काम करने के इसी तरह के गोरखधंधों में लगे हुए हैं कि खींच लो-लूट लो, पता नहीं कब सरकार चलती हो जाए। नाथ सरकार ने लोकसभा चुनाव के समय दावा किया था कि 90 दिन में हमने 75 वचन पूरे कर दिए हैं। लेकिन कौन से वचन पूरे किए, विपक्ष तो पूछ ही रहा है, जनता भी अब सवाल कर रही है।
पांच महीने में ही जनता कमलनाथ सरकार को खारिज कर चुकी है। लोकसभा चुनाव में 29 में से 28 लोकसभा सीटें यानी प्रदेश के कुल 230 विधानसभा क्षेत्रों में से 217 क्षेत्र कांग्रेस हार चुकी है। फिर भी सरकार की अक्ल के ताले नहीं खुल रहे हैं। मुख्यमंत्री सरप्लस बिजली होने का दावा कर रहे हैं, मगर भोपाल-इंदौर जैसे महानगर कटौती से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं, तो गांवों के हालातों की कल्पना की जा सकती है। मुख्यमंत्री अफसरों को अल्टीमेटम दे रहे हैं, पर हालात दिन-ब-दिन और बदतर होते जा रहे हैं।
सरकार की जगहंसाई की दास्तान यहीं खत्म नहीं होती। सरकार अखबारों को लगातार टारगेट किए हुए है। कांग्रेस की सुदर्शन व्यक्तित्व की धनी एक महिला जनसंपर्क में बैठकर पांच बड़े अखबारों के विज्ञापनों के बिलों का भुगतान करा देती हैं और प्रदेश के 7 हजार पत्र-पत्रिकाओं के खबरनवीस भुगतान के लिए जनसंपर्क की ड्योढ़ी पर सिर पटकते रहते हैं। न्यूज वेबसाइट की बात तो और दूभर है। उन्हें आठ महीने से विज्ञापन तो मिलते ही नहीं, उनके भुगतान भी रोक दिए जाते हैं। इतना ही नहीं यह सुदर्शना अब पत्रकारों, इवेंट कंपनी और अफसरों के खिलाफ एफआईआर कराने के लिए धमका रही है। ऐसा लगता है जैसे अखबार नवीसों को सरकार ने जर-खरीद गुलमटा समझ लिया है।
कमलनाथ जी! अगर ऐसे ही चलता रहा तो बदलाव की हवा कहीं और दिखने लगेगी। फिर न तो आप और न ही आपकी सरकार कुछ कर पाने की स्थिति में होगी। कुल जमा खर्च सरकार की पांच महीने की उपलब्धि सिर्फ ट्रांसफर-पोस्टिंग है। यदि और कुछ उपलब्धि होती तो लोकसभा चुनाव में आपकी कांग्रेस की मध्यप्रदेश में यह दुर्गति नहीं होती। यदि मैं गलत हूं, तो ऐसा क्या हुआ कि जनता ने जिस कांग्रेस को पांच महीने पहले सिर-आंखों पर बैठाया था, उसे एक झटके में जमीन पर लाकर पटक दिया।
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